Saturday, 19 October 2024

समाज की सच्चाई

 


ख़ुशी में, 

पास आयेंगे 

ढूंढेंगे,

बेबात मुस्कराएंगे

हवा बनायेंगे,

तुम्हारे हो जायेंगे 

पर सच कहा, 

दूर जाएंगे

अफवाहें उड़ाएंगे,

पागल बनायेंगे

रूठ जाएंगे,

कारण नहीं बताएंगे 



वक्त आयेगा,

जब मुंह फुलाएंगे 

दोस्ती तोड़,

दुश्मनी निभायेंगे 

तुमसे जरूरी,

फिर दूसरे हो जाएंगे

तुम गीता पढोगे,

ये कुरान उठाएंगे

सामने आयेंगे,

नजर नहीं मिलाएंगे

बुरे वक़्त में ,

मुंह घुमा के जाएंगे




शराब

सूंघने वाले,

पीते नहीं चाय

भूलना मत

राम दुबारा आए,

क्या लोग उनके हो पाए

साथ देगी,

तुम्हारी जोड़ी पाई 

रिश्ते कुआं ,

दोस्ती गहरी खाई 

यही है आज,

समाज की सच्चाई




भास्कर सुमन 


Sunday, 21 May 2017

वो अधूरी बात




अक्सर भ्रम के पाँव तले,
कुचले जाते दिल के जज्बात,
वो आधी रात, अधूरी बात,
सोने देगी पूरी रात.
क्यों बिगड़े इतने हालात,
जहन में वो पहली मुलाकात,
पकड़ कभी हाथों में हाथ,
कही जो तुमसे दिल की बात,
चाहे छूटे दुनिया सारी,
कभी छूटे तेरा साथ,
होठ अधूरे छोड़ गए जो,
कल नैन करेंगे पूरी बात,






माना तू तो नींद में खोयी,
ढूंढ रहा यंहा तुझको कोई
आखें फुट-फुट कर रोई,  

मै जागा मेरी क़िसमत सोई,






                              भास्कर सुमन





Friday, 17 February 2017

तन्हाई थोड़ी पायी..







ऐ काश.. फिर होते वो,

 मोहब्बत के सीतम

रूठे जो लगा जाते थे वो,

जज्बात–ए-मरहम

मुलाकातों में छुपाते थे जो,

 दिल का हर गम

तन्हाई थोड़ी पायी तो,




अब आँख है नम..!!.1..!!






हर जनम साथ तू रहे,

ये तो पहला है जनम

साँस छुटे मगर ये साथ ना,

 खायी थी कसम

दिल की दहलीज ना भूलेंगी,

 वो तेरे प्यारे कदम

तन्हाई थोड़ी पायी तो,




अब आँख है नम..!!.2..!!








दिन दूर, अब एक पल ना कटे,

 ओ जानम      
                                            
साथ २ पल का नहीं,

 साथ तू रहे हरदम

मुझे सीने से लगा ले, 

कर दे मुझपे  करम

तन्हाई थोड़ी पायी तो, 




अब आँख है नम..!!.3..!!






                                  
जरा देर से जाना,

मगर जाना ये सनम

जी लूंगा जुदा हो के भी,

 थोड़ा था भरम

मेरे दर्द का मरहम नहीं,

 मौला-ए-रहम


तन्हाई थोड़ी पायी तो,




अब आँख है नम..!!.4..!





                                  भास्कर सुमन











Thursday, 18 August 2016

मोरी.. राधा कब आई...!!








छन-छन अजब ऋतू बन आई, 

पतझड़ बन के खूब सताई

  लोक परलोक कहीं अब जाईं,

तोहरे बिन कहूँ चैन ना पाईं  

वन समान जरावत मन को,

राधा बहुत भई रुसवाई

कही नयन, सागर भरी जाई, 

  कब होई.. हमरी सुनवाई...!!



चलत गोपियाँ माखन छलकावत


देखि देखि, मोर मन ललचावत

लुभावत मन को तोहरी बतियाँ, 

लागे तोहरी मीठ मलाई

ऋतू मृदंग बजावत मन में, 

बहत पुरवइया, उमंग जगाई


तान छेड़ अब मुरलीया बजायी,

  जाने मोरी.. राधा कब आई...!!



                                   भास्कर सुमन 







Sunday, 3 July 2016

एक लड़की है



बातें वो करे जैसे, गीत कोई सुरीली सी

जरा सा छेड़ो बस , होती लाल पीली सी

गुस्सा खूब खाती, है जरा भड़कीली सी

थोड़ी शरारती मगर बिलकुल शर्मीली सी

बारिश में गीली कभी देखो तो नशीली सी

सौ सुइयों जैसी, चुभे दिल में कटीली सी

रेत पे पड़ती मानो, धुप वो चमकीली सी



एक लड़की है, ..जिसकी आँखें है नीली सी..!!


                    भास्कर सुमन












Friday, 24 June 2016

तू जो पास होती..




तन्हाई में अक्सर ही,
दिल से, मेरी बात होती
धड़कता जो तू ,
इन आँखों से बरसात होती..
पलक झपकते कभी,
सपनो में मुलाकात होती
नींद से जागता तो,

फिर गहरी अंधेरी रात होती..!!



.
बदनसीबी का आलम था,
किस्मत जो साथ होती
गम--उल्फ़त भरी जिंदगी,
ख़ुशियों की सौगात होती..
दिन नहीं ढलता अचानक,
 रोशन ये क़ायनात होती
तुम बिन जी लगना दूर,

जी लेता तो क्या बात होती..!!




तेरे कानो में चमकती,
किसी और की बाली ना होती
तू जो मेरी होती ,
जिंदगी कभी खाली ना होती..
सुखी पड़ी डाली ना होती,
बदरी कभी काली ना होती
धड़कन की धुन छोड़,

तू और कहीं मतवाली ना होती..!


चाहतें
 बेमानी तेरी और,
हसरतें जो बेईमान ना होती
बारिस के फुहारों में भी,
सुखी पड़ी मकान ना होती..
मैं तो तेरा ही था,
मुझसे तू अन्जान ना होती
ये दिल कहीं और धडक़ता,

यूँ रूह ये बेजान ना होती..!!



   भास्कर सुमन












Friday, 17 June 2016

मैं काफिर... कैराने का




देखा बहुत कश्मीर कभी, पंडित वहां से भागे थे 

दास्ताने खूब सुनी ,हम हिन्दू कभी ना जागे थे..

कीर्तन से होती शाम मेरी, अजान से नया सवेरा था

उस रोज जो मेरी आँख खुली, पलकों तले अँधेरा था..

सोंचा था जो अपना है, वो भाई मगर लुटेरा था

अल्पसंख्यक हिन्दू था जो, सबसे बड़ा बखेड़ा था..

तुमने कहा अल्लाह है, अल्लाह को भी मान लिया

फिर अल्लाह के बन्दे को, काफिर कैसे नाम दिया..

गूंज है तेरी गलियों में , पर मेरे घर सन्नाटा है 

मैं काफिर कैराने का , मेरा राम-रहीम से नाता है ..!!




                                                           भास्कर सुमन