छन-छन अजब ऋतू बन आई,
पतझड़ बन के खूब सताई
लोक परलोक कहीं अब जाईं,
तोहरे बिन कहूँ चैन ना पाईं
वन समान जरावत मन को,
राधा बहुत भई रुसवाई
कही नयन, सागर भरी जाई,
कब होई.. हमरी सुनवाई...!!
चलत गोपियाँ माखन छलकावत,
देखि देखि, मोर मन ललचावत
लुभावत मन को तोहरी बतियाँ,
लागे तोहरी मीठ मलाई
ऋतू मृदंग बजावत मन में,
बहत पुरवइया, उमंग जगाई
तान छेड़ अब मुरलीया बजायी,
Bahut accha 👌👌
ReplyDeleteBahut accha 👌👌
ReplyDeletethankuu bhai
ReplyDeletenever read a poem from Krishna's point of view : ) Good.
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