Thursday, 18 August 2016

मोरी.. राधा कब आई...!!








छन-छन अजब ऋतू बन आई, 

पतझड़ बन के खूब सताई

  लोक परलोक कहीं अब जाईं,

तोहरे बिन कहूँ चैन ना पाईं  

वन समान जरावत मन को,

राधा बहुत भई रुसवाई

कही नयन, सागर भरी जाई, 

  कब होई.. हमरी सुनवाई...!!



चलत गोपियाँ माखन छलकावत


देखि देखि, मोर मन ललचावत

लुभावत मन को तोहरी बतियाँ, 

लागे तोहरी मीठ मलाई

ऋतू मृदंग बजावत मन में, 

बहत पुरवइया, उमंग जगाई


तान छेड़ अब मुरलीया बजायी,

  जाने मोरी.. राधा कब आई...!!



                                   भास्कर सुमन 







Sunday, 3 July 2016

एक लड़की है



बातें वो करे जैसे, गीत कोई सुरीली सी

जरा सा छेड़ो बस , होती लाल पीली सी

गुस्सा खूब खाती, है जरा भड़कीली सी

थोड़ी शरारती मगर बिलकुल शर्मीली सी

बारिश में गीली कभी देखो तो नशीली सी

सौ सुइयों जैसी, चुभे दिल में कटीली सी

रेत पे पड़ती मानो, धुप वो चमकीली सी



एक लड़की है, ..जिसकी आँखें है नीली सी..!!


                    भास्कर सुमन












Friday, 24 June 2016

तू जो पास होती..




तन्हाई में अक्सर ही,
दिल से, मेरी बात होती
धड़कता जो तू ,
इन आँखों से बरसात होती..
पलक झपकते कभी,
सपनो में मुलाकात होती
नींद से जागता तो,

फिर गहरी अंधेरी रात होती..!!



.
बदनसीबी का आलम था,
किस्मत जो साथ होती
गम--उल्फ़त भरी जिंदगी,
ख़ुशियों की सौगात होती..
दिन नहीं ढलता अचानक,
 रोशन ये क़ायनात होती
तुम बिन जी लगना दूर,

जी लेता तो क्या बात होती..!!




तेरे कानो में चमकती,
किसी और की बाली ना होती
तू जो मेरी होती ,
जिंदगी कभी खाली ना होती..
सुखी पड़ी डाली ना होती,
बदरी कभी काली ना होती
धड़कन की धुन छोड़,

तू और कहीं मतवाली ना होती..!


चाहतें
 बेमानी तेरी और,
हसरतें जो बेईमान ना होती
बारिस के फुहारों में भी,
सुखी पड़ी मकान ना होती..
मैं तो तेरा ही था,
मुझसे तू अन्जान ना होती
ये दिल कहीं और धडक़ता,

यूँ रूह ये बेजान ना होती..!!



   भास्कर सुमन












Friday, 17 June 2016

मैं काफिर... कैराने का




देखा बहुत कश्मीर कभी, पंडित वहां से भागे थे 

दास्ताने खूब सुनी ,हम हिन्दू कभी ना जागे थे..

कीर्तन से होती शाम मेरी, अजान से नया सवेरा था

उस रोज जो मेरी आँख खुली, पलकों तले अँधेरा था..

सोंचा था जो अपना है, वो भाई मगर लुटेरा था

अल्पसंख्यक हिन्दू था जो, सबसे बड़ा बखेड़ा था..

तुमने कहा अल्लाह है, अल्लाह को भी मान लिया

फिर अल्लाह के बन्दे को, काफिर कैसे नाम दिया..

गूंज है तेरी गलियों में , पर मेरे घर सन्नाटा है 

मैं काफिर कैराने का , मेरा राम-रहीम से नाता है ..!!




                                                           भास्कर सुमन 








Wednesday, 25 May 2016

इस पल की मौत मैं ..मर नहीं पाया....!!





मैं जिया वहाँ जहाँ मरना था

हजार फिट जब चढ़ना था..

बर्फ को अपने सीने से लगाए

हिम-युग से हमे गुजरना था..

ज्वाला थी ऐसी सीने में

हिमराज को भी पिघलना था..

पहुंच गए जहाँ मरना था

क्या ख़ाक किसी से डरना था….!!..१ ..!!










बारिस में वहाँ बम गोले थे

आसमां में उड़नखटोले थे..

हर कदम थी आखरी कदम

और हर राह में रोड़े थे..

वो कसम याद थी भारती की

दुश्मन को कही ना छोड़े थे..

पर कसम भूल माशूका की


कुछ बंकर हमने तोड़े थे....!!......!!












हैसियत है क्या हथियारों की

हाथों से के सीने चीरे थे..

कुलदीप सिंह याद हों गर ..

वो सवा लाख से भिड़े थे..

ऊंट के मुंह में जीरे थे..

एक बाण से दागे हजार तीरें थे..

लोंगेवाला हो या करगिल..

हम तो तने रहे वो ही गिरे थे….!!...३ …!!









दूर से आती चमक दिखी

 मैं गिरा वहीँ ,सब दौड़े आए..  
                 
गले लगाया, आँसू बहाए

चले मीलों बाज़ूओं में उठाए.. 

रोए कभी- हिम्मत बंधाए

पहुंच गए वो आस जगाए..

आखिर में हम जी ना पाए


पता चला लाश थे लाए....!!......!!









कंधे पे उठाये, तिरंगा ओढ़ाए

यार मेरे जब घर पे लाए..    
                 
वक़्त से पहले माँ को देख

ख़ुशी थी जो फुले समाए..

कहा की माँ तू रोना मत अब

मरे नहीं हम जी के आए..                                                            

माँ भारती के आँचल तले 

हजारों बार ही जन्नत पाए....!!.....!! 








..


  अब माँ ..कहती है..



ममता को कोई कितना दबाए

आँसू मेरे छलक ही आए..  
                    
लो ये आँसू पोंछ लिया पर 

धड़कन को अब कैसे मनाए..

बेटा तू जिस लोक भी जाए

लोग तुम्हारे गौरव गाएं..

जाते जाते ये भी बता दे


अपना लाल हम कहाँ से लाए..!!......!!










जा रहा था दुखी मन से

वो मधुर राग किसी ने गाया ..

राष्ट्रगान की गूंज सुनी तो

यम से अपना हाथ छुड़ाया..

फिर सबसे मैं मिलने आया

खुशियाँ देख बहुत मुस्काया ..

साथ में सबके जश्न मनाया


प्यार भरा वो गीत गुनगुनाया.....!!......!!










यम बोले अब बस कर भाई

आँखों में फिर आंसू आए..

लोक छोड़ परलोक चले हम

वहाँ कभी भी चैन ना पाए..

नारद जी जब मिलने आए

हाले-वतन जो हमे सुनाए..

मैंने पूछा कैसे है सब ?


नारद बोले अब क्या हम बताए....!!...८...!!













नारद जी ..बोले..



देशप्रेम की बात करे जो

नेतृत्व बहुत चुनिंदा है..

भारत की क्या बात कहूं

विदेशों तक ये निन्दा है..

अफजल के कातिल जिंदा हैं

कुछ लोग बहुत शार्मिंदा हैं..

अच्छा था मर गए थे तुम तब


अब ख़ाक वहाँ कोई जिंदा है....!!...९...!!
















इतना कहते ही दृश्य दिखाया

सच दृष्टिपटल के सामने लाया..

गददारो को देश पे हँसते देखा  
               
उस सैनिक को जब रोना आया..

पूछा अगर वो मौत थी मेरी

तो आज मुझे ये क्या हैं आया..?

मरा था तब तो शान से मैं भी

इस पल की मौत मैं ..मर नहीं पाया....!!...१०...!!













भास्कर सुमन


                                          
                                                                                                               .