Friday 24 June 2016

तू जो पास होती..




तन्हाई में अक्सर ही,
दिल से, मेरी बात होती
धड़कता जो तू ,
इन आँखों से बरसात होती..
पलक झपकते कभी,
सपनो में मुलाकात होती
नींद से जागता तो,

फिर गहरी अंधेरी रात होती..!!



.
बदनसीबी का आलम था,
किस्मत जो साथ होती
गम--उल्फ़त भरी जिंदगी,
ख़ुशियों की सौगात होती..
दिन नहीं ढलता अचानक,
 रोशन ये क़ायनात होती
तुम बिन जी लगना दूर,

जी लेता तो क्या बात होती..!!




तेरे कानो में चमकती,
किसी और की बाली ना होती
तू जो मेरी होती ,
जिंदगी कभी खाली ना होती..
सुखी पड़ी डाली ना होती,
बदरी कभी काली ना होती
धड़कन की धुन छोड़,

तू और कहीं मतवाली ना होती..!


चाहतें
 बेमानी तेरी और,
हसरतें जो बेईमान ना होती
बारिस के फुहारों में भी,
सुखी पड़ी मकान ना होती..
मैं तो तेरा ही था,
मुझसे तू अन्जान ना होती
ये दिल कहीं और धडक़ता,

यूँ रूह ये बेजान ना होती..!!



   भास्कर सुमन












Friday 17 June 2016

मैं काफिर... कैराने का




देखा बहुत कश्मीर कभी, पंडित वहां से भागे थे 

दास्ताने खूब सुनी ,हम हिन्दू कभी ना जागे थे..

कीर्तन से होती शाम मेरी, अजान से नया सवेरा था

उस रोज जो मेरी आँख खुली, पलकों तले अँधेरा था..

सोंचा था जो अपना है, वो भाई मगर लुटेरा था

अल्पसंख्यक हिन्दू था जो, सबसे बड़ा बखेड़ा था..

तुमने कहा अल्लाह है, अल्लाह को भी मान लिया

फिर अल्लाह के बन्दे को, काफिर कैसे नाम दिया..

गूंज है तेरी गलियों में , पर मेरे घर सन्नाटा है 

मैं काफिर कैराने का , मेरा राम-रहीम से नाता है ..!!




                                                           भास्कर सुमन